Ashok ka shilaalekh अशोक का शिलालेख :स्तंभ






 स्तंभ :अशोक का शिलालेख 

ज्वार भाटा (tide) केसे होता हैं ?  

अशोक के


राज्यकाल के दौरान स्तंभों के शिलालेख ( राजकोय प्रतीक ) के रूप में या युद्ध में जीत के उपलक्षय में आती महत्वप्रूनहो गए। साथ ही उसके राजकिय उपदेशों का प्रचार करने के लॉ भी स्तंभों का उपयोग किया। 


औसतन 40 फ़ीट ऊँचे, ये स्तंभ समान्यत : चुनार के बलुआ पठार या प्रस्तर से बनाए गए थे और इसके चार भाग थे लम्बा मुठ आधार का निर्माण करता था। जोकी प्रस्तर के एक ही खंड अथवा एकाशम प्रस्तर से बना होता था। इसके सबसे ऊपर कमल या घंटे के आकार में शीर्ष या ललाट ईरानी स्तंभों से प्रभावित थे क्योंकि ये स्तंभ अत्याधिक पालिशदार और चमकदार थे। ललाट के ऊपर शीर्ष-फलक के रूप में ज्ञात विर्ताकार या आयातकार आधार होता था जिस पर पशु मूर्ति होती थी   


उदाहरण :-चंपारन में “लोरियाँ नंदनघढ़” स्तंभ वराणशी में “सारनाथ स्तंभ” आदि 
स्तूप :- स्तूप वेदिक काल से भारत में प्रचलित “श्वाघट टीले “थे यह अंत्येष्टि  मेघ पुंज का पारम्परिक निर्देशन हैं। इसमें “मृतकों के अवशेषों और राख को रखा जाता” था अशोक के राज्यकाल के दौरान स्तूप कला अपने चरमोत्कर्ष  पर पहुँच गयी। उसके राज्य काल के दौरान लगभग 84000 स्तूप बनवाए गए थे। 


वेदिक परम्परा से होते हुए भी स्तूपों को बौद्धो द्वारा लोकप्रिय बनाया गया। बुद्ध की मृत्यु के बाद 9 स्तूप बनवाए गए थे। इनमे से 8 में उसकी “मेढ़ी” में बुद्ध के अवशेषों को रखा गया थे जबकि नौवें में वह ब्रतन था। जिसमें मूल रूप से इन अवशेषों को रखा गया था। स्तूप के विभिन्न भागो को निर्देशित करने वाला मूलभूत आरेख नीच दिया  हैं। 


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