control over public administration

सभी देशों में लोक प्रशासन का विस्तार हो रहा है शासन के कार्यों में गिर गई एक अविरल प्रक्रिया का रूप धारण कर चुकी है और प्रतिवर्ष किसी ना किसी ने दिल से की विदिशा की स्थिति में हो जाती है भारत में भी शासन की शक्तियों का निरंतर विकास हो रहा है वित्तीय विश्व युद्ध 1939-45 तथा उसके पश्चात उत्पन्न समस्याओं नवीन संविधान लागू होने एवं प्रशासन द्वारा नवीन क्षेत्रों में अनेक कार्यों एवं पंचवर्षीय योजनाओं के प्रारंभ और देश की उतरी सीमाओं पर उत्पन्न नए संकटों में शासन की शक्तियों के प्रसार में योग दिया है फलस्वरुप शासन अतुल शक्ति से युक्त है सत्य तो यह है कि शहरी जीवन व्यतीत करने वाले हम सभी यादव पर जा तकिया प्रकाशित या प्रशासन से लाभ लाभान्वित होने वाले के रूप में जीवित हैं तथा अपना जीवन व्यतीत करते हैं ऐसी स्थिति में प्रशासन तीन शक्तियों को नियंत्रण करने की आवश्यकता प्रसिद्ध है वाइट के शब्दों में प्रजातंत्रीय समाज में शक्ति पर नियंत्रण करना आवश्यक है शक्ति जितनी अधिक है की भी उतनी ही आवश्यकता है अस्पष्ट प्रयोजन के लिए पर्याप्त अधिकार किस प्रकार नहीं किया जाए तथा सत्ता को पंगु बनाएं बिना किस प्रकार से उचित नियंत्रण स्थापित किया जाए यह लोकप्रिय सरकार के समक्ष एक ऐतिहासिक उलझन है शक्ति प्रदान करते समय यह है सदैव भय रहता है  कि कहीं सखी की उपेक्षा ज्यादा उपयोग तो नहीं किया जाएगा यह केवल श्रद्धा निगम का नहीं है भारत में आपातकाल 26 जून से 30 मार्च तक प्रशासन द्वारा की गई इस बात की स्पष्ट है लोकमत व्यावसायिक परिमाप एवं नीति शास्त्र और समाज की प्रकृति सभी मिलकर विभिन्न प्रकारों से विभिन्न मात्रा में प्रशासन को प्रभावित एवं नियंत्रित करते हैं इस समस्याओं का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जाएगा

 1विधाई नियंत्रण 

2 कार्यपालिका नियंत्रण 

3 न्यायिक नियंत्रन

  प्रशासन पर विधाई नियंत्रण प्रजातंत्रीय देशों में प्रशासन की नीतियां के मुख्य रूप रेखा व्यवस्थापिका के अधिनियम द्वारा निर्धारित की जाती है प्रशासन का कार्य नीतियों का निर्माण करना नहीं है अपनी नीतियां विधानमंडल द्वारा निर्धारित की जाती है शासन के विभिन्न कार्यों एवं कार्यक्रमों के लिए समुचित विधि विधान मंडल ही प्रदान करता है इन विधाई विशेषाधिकारों के अतिरिक्त लोक प्रशासन का संचालन एवं नियंत्रण भी विधानमंडल का समान अधिकार है जिसका w F bilowi के शब्दों में यह तात्पर्य है संपादित किए जाने वाले कार्य के स्वरूप तथा उस को संपादित करने वाले साधनों का निर्णय करना कार्य को संपन्न करने हेतु आवश्यक निर्देश देना एवं संपादित करने वाले व्यक्तियों पर सर्वेक्षण एवं नियंत्रण रखना जिससे समुचित रुप में कुशलता पूर्वक कार्य संपन्न हो सके
  विधानमंडल द्वारा नवीन अधिनियम को निर्मित  करके या विद्यमान अधिनियम को समाप्त अथवा संशोधित करके सार्वजनिक नीति के प्रधान उद्देश्य निर्धारित किए जाते हैं लेकिन समस्त देशों में विधानमंडल की अपेक्षा कार्यपालिका ही व्यवहारिक रूप से नीति निर्माण करती है संयुक्त राज्य अमेरिका में कांग्रेस का नीति संबंधी कार्य दिन-प्रतिदिन कार्यपालिका के कार्यक्रमों को स्वीकार संशोधित या अस्वीकार करना हो गया है कांग्रेस के लिए स्वविवेक को नियंत्रण करना शासकीय अधिकरणों में नीति निर्धारण नीति करने की दृष्टि से भी आवश्यक हो गया है संसदीय शासन प्रणाली वाले देशों में यह प्रवृत्ति पूर्णता निर्भ्रांत करने की दृष्टि से भी आवश्यक हो गया है संसदीय शासन प्रणाली वाले देशों में भी यह पर्व की पूर्व निर्धारित है एवं जो ब्रिटिश शासन में अनेक टीकाकारों से  सपष्ट है कार्यपालिका द्वारा प्रस्तावित सार्वजनिक विधेयक को की संख्या व्यक्तिगत सदस्यों द्वारा प्रस्तावित विदेशों से कहीं अधिक होती है भारत में ही विधायक नेतृत्व शासन के हाथों में ही है इसके अतिरिक्त विधान के क्षेत्र विभिन्नताएं एवं सीमा में अत्यधिक वृद्धि हुई है केवल विधान संबंधी तकनीकी ज्ञान के अभाव के कारण विधायकगण विधि प्रस्ताव उपस्थित नहीं कर पाते और प्रभाव पूर्ण रुप से वाद-विवाद में भाग नहीं ले पाते जैसा कि मोदी ने कहा है विगत 20 वर्षों से अधिक अधिक अनुभव किया जा रहा है की दक्षता की मात्रा जो शासन में उपलब्ध है यह ज्ञान की मात्रा के अनुपात में जो एक संसद सदस्य में समानता होती है इतनी अनुपात हिना है कि संसद की प्रमुख भूमिका अपनी प्रभावशीलता खो जा रही है इसके अतिरिक्त विधाई नियंत्रण की प्रभावशीलता इसलिए ही शाम हो जाती है कि वर्तमान सरकार लोकसभा में अपने दलीय मोहम्मद के कारण सुरक्षित हैं और वह सभी विरोधी की सरलता से अपेक्षा कर सकती है 
भारत में विरोधी नियंत्रण के उपकरण हैं प्रश्न पूछना प्रस्ताव पेश करना काम रोको प्रस्ताव निंदा प्रस्ताव बजट तथा संसदीय समितियां सार्वजनिक लेखा समिति प्रशासन पर नियंत्रण रखने का अवसर प्राप्त है जिसकी संक्षिप्त चर्चा निम्नवत है

 1 राष्ट्रपति का भाषण: संसद का प्रत्येक नया अधिवेशन राष्ट्रपति के भाषण से प्रारंभ होता है राष्ट्रपति के भाषण में मोटे तौर पर उन्मुखी नीतियों तथा क्रियाकलापों पर प्रकाश डाला जाता है जो भविष्य में कार्यपालिका की नीतियां होती  है सामान्यतः इस पर सामान्य वाद विवाद के लिए 4 दिन का समय निश्चित किया जाता है सदस्यों को यह अवसर दिया जाता है कि वह प्रशासन द्वारा आवश्यक कार्यों की उपेक्षा एवं फूलों के लिए उसकी भली प्रकार आलोचना करें यह बात समझनी चाहिए कि इस तथा अन्य अवसरों पर संसद में जो भाषण दिए जाते हैं उसका उद्देश्य सम्मानित सदस्यों पर प्रभाव डालना ना होकर संसद के बाहर लोकमत को जागृत करना होता है क्योंकि सदस्यगण के भाषण तथा मत देने नियमों का कठोरता के साथ पालन करते हैं ऐसा करने के लिए वादे होते हैं

 2 बजट पर चर्चा: जब से बजट ऑन अकाउंट प्रथा का श्रीगणेश हुआ है संसद को बजट के प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए अधिक अवसर प्राप्त हो गए हैं संसद सदस्य अर्थात लोकसभा के सदस्यों को बजट पर चर्चा के दौरान प्रशासन की समालोचना करने का निम्न अवसर प्राप्त होते हैं
A: बजट प्रस्तुत करने के पश्चात ही सामान्य चर्चा आरंभ हो जाती है जो पुरे बजट या उसमें एक सिद्धांत के किसी प्रश्न से संबंधित होती है
B:  अनुदानों पर मतदान के समय सदस्यों को कार्यपालिका की आलोचना का दूसरा अवसर प्राप्त होता है इस अवसर पर प्रत्येक मांग पर पृथक-पृथक चर्चा होती है कटौती के प्रस्ताव पेश किए जाते हैं तो उसमें उठाए गए विशिष्ट बातों पर भी चर्चा की जाती है चर्चा पर्याप्त होती है और इसमें विशिष्ट बातों की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है
C: वित्त विधेयक पर चर्चा होने पर संपूर्ण शासन पर चर्चा करने का अवसर सदस्यों को प्राप्त हो जाता है लोकसभा के भूतपूर्व अध्यक्ष श्री मालूम करके शब्दों में यह एक सामान्य सिद्धांत है कि वित्त विधेयक के किसी भी विषय पर चर्चा की जा सकती है और जनता की किसी भी कठिनाई पर प्रकाश डाला जा सकता है इसका आधार यह सिद्धांत है कि किसी भी नागरिक से तब तक कर नहीं लिया जाना चाहिए जब तक कि उसे संसद के माध्यम से अपना विचार प्रस्तुत करने तथा असंतोष प्रकट करने का पूरा पूरा अवसर प्राप्त ना हो जाए
3 प्रश्नकाल:  संसद के सत्र काल में उसके प्रत्येक  दिवस का पहला घंटा प्रश्नों के लिए निश्चित रहता है यह नियंत्रण का एक प्रभावशाली असर होता है प्रत्येक दिन औसतन लगभग 30 मौखिक प्रश्न पूछे जाते हैं और उनका उत्तर दिया जाता है प्रश्न पूछने का यह विशेष अधिकार शासन को चौकन्ना रखता है प्रशासन की नीतियों तथा क्रियाकलापों के विभिन्न पहलुओं पर आश्चर्यजनक से जनसाधारण का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रश्न  पूछना एक प्रभावपूर्ण युक्ति है प्रश्न विशेष के साथ पूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं जिनमें संबंधित मंत्री का प्रतिपरीक्षण हो जाता है और पराया उसकी गलतियां भी पकड़ में आ जाती है किसी  जिनमें संबंधित मंत्री का प्रतिपरीक्षण हो जाता है और पराया उसकी गलतियां भी पकड़ में आ जाती है 
 किसी भी प्रशासकीय कार्य पर तो प्रश्न तो पूछा जा सकता है किंतु मंत्री को सदस्यों के प्रश्न का उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता अध्यक्ष नहीं कुछ प्रश्नों की अनुमति देने से इंकार कर सकता है प्रश्न पूछने के तीन उद्देश्य हो सकते हैं वन किसी प्रकार की जानकारी प्राप्त करना तू किसी विषय पर मंत्रियों की राय जानना तीन किसी आरोपितों दुर्बलता के  सरकार को तंग करना बहुत से प्रश्न होते हैं किंतु कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जून में शासन बहुत ही हानि की संभावना होती है उदाहरणार्थ 1956 ईस्वी में जीवन बीमा निगम का एक विषय एक प्रश्न के उत्तर में ही उठ खड़ा हुआ था जिसके परिणाम स्वरुप होगी वित्त मंत्री को त्यागपत्र देना पड़ा 1967 में एक प्रश्न के दौरान ही प्यारेलाल का मामला प्रकाश में आया था इतनी इतनी सनसनी उत्पन्न की थी इसलिए बुद्धा लिंगम को जो समय वित्त मंत्रालय के सचिव थे तथा जिनकी यूरोप में भारत के राजदूत पद पर नियुक्ति घोषित की गई थी अपने नए पद से हाथ धोना पड़ा और सरकार को बदनामी करनी पड़ी थी संक्षेप में संसदीय प्रश्नों का प्रशासन पर बहुत प्रभाव पड़ता है खेल का कथन है कि कोई भी व्यक्ति जिसने किसी लोक सेवा विभाग में कार्य किया है मेरी इस बात से सहमत होगा कि यदि कोई महत्व की बात है जिसके कारण लोकसेवा को सावधान रैली तथा सजग रहना चाहिए तथा ऐसे अभिलेख संभाल कर रखना चाहिए जो लोक सेवा के बाहर व्यक्ति वस्तु समझे जाते हो तो वह केवल संसदीय प्रश्नों का वही है ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री और इटली का भी इसी से मिलता जुलता मत है सदा ही मैं यह समझता रहा हूं कि लोक सभा में प्रश्न पूछने का समय वास्तव में सच्चे प्रजातंत्र का सर्वोत्तम उदाहरण है डॉट डॉट डॉट मंत्री से पूछे प्रश्नों तथा इससे भी अधिक सदन में खुले रुप से पूछे गए प्रश्नों के फलस्वरुप संपूर्ण लोक सेवा को सजग रहना पड़ता है अंत में यह संकेत करना आवश्यक है कि प्रश्न करने का उपकरण लचीला शिवगामी एवं तत्कालिक है और यह शासन को नीचा दिखाने के लिए पर्याप्त सामर्थ्यवान होते हुए भी इतना शक्तिशाली नहीं की घातक सिद्ध हो सके
4सुनयकाल: प्रश्नकाल 1 घंटे का होता है जब एक घंटा पूरा हो जाता है तो प्रश्न काल समाप्त कर दिए जाते हैं इस समय संसद सदस्य सामयिक विषयों पर मंत्रियों के बिना पूर्व सूचना दिए हुए प्रश्न पूछ सकते हैं सुने कार्यपालिका में भय उत्पन्न करने वाला संसदीय नियंत्रण का यंत्र है चौथी लोकसभा में शून्य काल का काफी प्रयोग किया जाता था 8 वीं लोकसभा में विरोधी दलों का महत्व गिर गया है लेकिन 1990 ईस्वी से दुनिया सुनय काल का महत्व पुनः बढ़ गया है

4 कामरोको बहस: काम रोको प्रस्ताव दैनिक नियंत्रण का एक साधन है इसका प्रयोग सार्वजनिक महत्व के अति आवश्यक किसी विशिष्ट प्रश्न पर सदन में बस आरंभ करने के लिए किया जाता है अध्यक्ष द्वारा  अनुमति दिए जाने पर उठाए गए प्रश्न पर तुरंत वादविवाद प्रारंभ हो जाता है ऐसी दशा में सदन का सामान्य कार्य कुछ समय के लिए रुक जाता है व्यवहार में प्रायः देखा जाता है कि अध्यक्ष अत्यावश्यक तथा सार्वजनिक महत्व के प्रति उदार व्याख्या नहीं करते है

 काम रोको प्रस्ताव पर 2 घंटे वाली बहस से भिन्न होती है 2 घंटे वाली बहस किसी अत्यावश्यक सभी विषय पर हो सकती है काम रोको बहस की विशेषता यह है कि इसमें बस के अंत में मतदान होता है किंतु 2 घंटे वाली बहस में केवल चर्चा होती है मतदान नहीं होता है

6 अविश्वास का प्रस्ताव: अविश्वास का प्रस्ताव कि जिसे निंदा प्रस्ताव भी कहते हैं संविधान व्यवस्था की गई है जब सरकार की पूरी झांसी की नीति दोषपूर्ण तथा आपत्तिजनक फोटो निंदा प्रस्ताव के माध्यम से उसे सुधारा जा सकता है प्राप्त होने पर सरकार को त्यागपत्र देना पड़ता है यह प्रस्ताव भारत में 1962 ईस्वी तक कागज  तक ही सीमित बना रहा सबसे पहली बार 1963 में लोकसभा के मानसून अधिवेशन में सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था वह निरस्त हो गया यह प्रस्ताव को प्रस्तुत करने की गति नेहरू के बाद के काल में बढ़ी है
स्मरणीय है कि जुलाई 1979 ईस्वी में अविश्वास का प्रस्ताव सदन के पटल पर रखे जाने पर शासक जनता पार्टी का विखंडन प्रारंभ हो गया था और मोरारजी देसाई की सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा था इसके बाद चरण सिंह की सरकार भी अविश्वास प्रस्ताव पर गिर गई थी 1990 ईस्वी में विश्वनाथ प्रताप सिंह के राष्ट्रीय मोर्चा मंत्रिमंडल और 1991 में चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल का भी पतन अविश्वास प्रस्ताव पर ही हुआ
7 विधेयक पर बहस: विधायक की विभिन्न वचन होते हैं इन वचनों के अवसर विधेयक में नहीं संपूर्ण नीति की आलोचना करने का असीम अवसर प्रदान करते हैं ऐसी आलोचना कभी-कभी तो सरकार के विचार बदल देती है उदाहरणार्थ 1951 विरोध के कारण सरकार ने हिंदू कोड बिल को वापस ले लिया था इसी तरह हमेशा सरस्वती स्कूल में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के नाम से हिंदू शब्द निकालने का प्रस्ताव देश में भारी विरोध के कारण शासन द्वारा वापस लिया गया पी वी नरसिंह राव की सरकार 1994 में एक अधिनियम पारित करके मुख्य चुनाव आयुक्त के अधिकारों में कटौती करना चाहती थी किंतु इसके अत्यंत विरोधी सरकार ने लोकसभा में चुनाव सुधार का यह विधेयक प्रस्तुत ही नहीं किया
8 संसदीय समितियां: संसदीय समितियां सार्वजनिक लेखा समिति अनुमान समिति ऋण संविधान समिति सार्वजनिक उद्योग समिति तथा आश्वासन संबंधी समिति प्रशासन पर नियंत्रण के साधन है हाल ही में संसद सदस्यों की सरकारी विभागों से संबंधित कलाकार समितियों का भी निर्माण हुआ है प्रथम दो समितियों प्रशासन पर विस्तृत नियंत्रण रखती है और अंतिम समिति अर्थात आश्वासन  संबंधी समिति मंत्रियों द्वारा सदन में दिए गए वचनों आश्वासनों निश्चय वाली की छानबीन करती है और निम्नलिखित बातों पर प्रतिवेदन दिए जाते हैं
A: कहां तक सरकार द्वारा दिए गए आश्वासनों वचनों आदि का परिपालन किया गया?
2: यदि परिपालन किया गया है तो क्या वह उस प्रयोजन के लिए अपेक्षित समय के भीतर किया गया
 इस समिति के कारण मंत्रीगण अपने द्वारा किए गए वचनों के विषय में सावधान रहते हैं और प्रशासन द्वारा किए गए संकल्पों को पूरा करने के लिए शीघ्र कार्रवाई करते हैं प्रथम तीन समितियां पर ऐसी पुस्तक में अययंत्र चर्चा की गई है
9: लेखा परीक्षण: संसद लेखा नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक नामक पदाधिकारी द्वारा वह पर नियंत्रण रखती है लेखा नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक सरकार के सभी लेखों की जांच करता है और 1976 लेखाओं का विवरण था इसी वर्ष से लेखा एवं लेखा परीक्षण पृथक कर दिए गए हैं और इसका तारीख यह देखना है कि संसद द्वारा स्वीकृत धन राशि में बिना किसी अनुपूरक मत के विधि तो नहीं की जाती और  जो धन वह किया गया है वह नियम कुल  फीवर किया गया है वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में संसद के प्रति शासन उत्तरदाई होता है और लेखा नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों द्वारा यह उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाता है यह पदाधिकारी लोक लेखा समिति का मार्गदर्शक तत्वज्ञानी एवं मित्र कहा जाता है
 विधाई नियंत्रण की सीमाएं
 संपूर्ण प्रशासन तंत्र पर विधानमंडल की शक्तिशाली नियंत्रण होता है स्मरणीय है कि सरकार के प्रत्येक कार्य पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं प्रत्येक प्रश्न पर स्थगन काम रोको प्रस्ताव पर बहस हो सकती है जो एक इतिहास बन सकती है इतना होने पर ही यह सत्य है कि प्रशासन पर विधाई नियंत्रण इतना प्रभावशाली नहीं है जितना होना चाहिए संक्षेप में विधानमंडलों  के पास महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर नियंत्रण करने के लिए ना तो कर्मचारी वर्क है ना विशेषज्ञ ही होते हैं दुराचरण के एकाकी मामलों में व्यतीत श्रद्धा पूर्वक तथा प्रभावशाली ढंग से एक साथ काम कर सकते हैं और इस अधिकारी की नीति तथा कार्यक्रम उसके संकल्प के विरुद्ध होते हैं उसे कठोर दंड देते हैं किंतु ऐसे आप कदम नियंत्रण तथा  निरीक्षण के अपर्याप्त विकल्प हैं जो अधिकारियों की शक्ति एवं स्वविवेक निर्णय को नियंत्रित करने हेतु आवश्यक है इन शब्दों में फिफनर तथा प्रेसथस ने संयुक्त राज्य अमेरिका में कार्यपालिका पर कांग्रेस के सीमित प्रभाव को व्यक्त किया है विधाई नियंत्रण तथा निरीक्षण की प्रभावशीलता एक विश्वव्यापी लक्षण बन गया है भारत भी इसका अपवाद नहीं है सत्य तो यह है कि इसके विपरीत भारतीय प्रशासन की समाजवादी पृष्ठभूमि प्रशासन तथा जनता के बीच विस्तृत खाई देश में निरक्षरता का दुर्भाग्य विस्तार जिसकी अभी हमारे विधायकों में होती है कुछ बातें ऐसी है जो विधाई नियंत्रण को और अधिक सीमित कर देती है सुरक्षा पर विधानमंडल का तो बहुत ही कम नियंत्रण है इस के विपरीत भारत में लोक प्रशासन में एकलव्य के अनुसार सांसद अत्याधिक हस्तक्षेप करती है उनके द्वारा की गई भारतीय संसद की आलोचना संक्षेप में निम्नवत है
1 सांसद सदस्य लेखा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक अतिशयोक्तिपूर्ण महत्व देते हैं एवं उसके प्रतिवेदनों पर अधिक ध्यान देते हैं
2 संसद सदस्यों में यह स्पष्ट एवं सामान्य आशंका है कि उसके दायित्व को संरक्षण नहीं दिया जाता
3 ऐसा प्रतीत होता है कि संसद में छोटे परंतु प्रभावशाली व्यापारिक हितों को श्रद्धा पूर्वक रियायत देने की प्रवृत्ति है तदनुसार शासकीय निर्णय में परिवर्तन कर दिए जाते हैं
4 अंसारी द्वारा लोक सेवा आयोग के कार्य से संबंधित लघु एवं संकीर्ण दृष्टिकोण का समर्थन अपने संबंध में अपनाया गया था यह भ्रांति का परिणाम था कि इसमें योग्यता प्रमाण सशक्त होती है परंतु इस में मंत्रियों का उत्तरदायित्व हो जाता है और उसके प्रति फलस्वरुप संसदीय उत्तरदायित्व नष्ट होता है
 सत्ता के प्रादतीकरण की संसद भवन विरोधी है स्मरणीय है सत्ता का प्रदतीकरन भारतीय प्रशासन का बड़ा दोष हैं
 एकलवी का यह मतलब भारतीय पृष्ठभूमि की उपेक्षा करता है और यदि इसके मत को स्वीकार कर लिया जाए तो से भारतीय प्रशासन पर नौकरशाही का और अधिक प्रभाव हो जाएगा यह स्मरण रखना चाहिए कि सांसद स्थिति तानाशाही शासन में बंदी की हो सकती है जैसा कि आपातकाल 26 जून 1975 ईस्वी से 23 मार्च 1977 ईस्वी में हुआ था संसदीय नियंत्रण को सीमित करने वाले उपरोक्त तत्व के अतिरिक्त भारत तथा अन्य लोकतांत्रिक देशों में संसदीय नियंत्रण की निम्नलिखित सीमाएं हैं
1 नीति निर्धारण में लोक कर्मचारी संघ प्रिय रुप से भाग लेते हैं एक बड़ी संख्या में विधेयक का शासकीय विभाग में ही प्रादुर्भाव होता है अंतः विधायक नेतृत्व शासन में ही निश्चित रूप में निहित है
2 प्रशासन के कार्य क्रमशः असाधारण रूप से एवं विस्तृत होते जा रहे हैं निरंतर प्रसारोनमुखी प्रशासन को प्रभावशाली नियंत्रण में रखने के लिए विधान मंडलों के पास समय एवं आवश्यक दक्ष कर्मचारियों का अभाव है
3 वित्तीय व्यवस्था एवं प्रभावशाली नियंत्रण रखने में विधानमंडल नितांत असमर्थ है विधायकों में बहुरा विभिन्न विभागों के तकनीकी ज्ञान का अभाव होता है फलस्वरुप विभागों के अनुदानों की मांग की आलोचना करने के इच्छुक होते हैं इसके अतिरिक्त संसद तब तक आवश्यक धन एकत्र नहीं कर सकती जब तक कि कार्यपालिका उसकी मांग ना करें संसद कोई नया कर भी नहीं लगा सकती यह तो केवल कार्यपालिका द्वारा की गई मांग को कम या अस्वीकार कर सकती है
 अमेरिकी कांग्रेस विषयक निम्नलिखित वर्णन भारतीय संसद पर भी लागू होता है विधान मंडलों द्वारा प्रशासन पर नियंत्रण है संक्षेप में उसने व्यवहारिक की अपेक्षा सैद्धांतिक प्रभावशीलता ही अधिक है वास्तविकता तो यह है कि विधाई नियंत्रण अनुपयुक्त है और उसमें सुधार हेतु अधिक विवेकशील विश्लेषण तथा प्रथम की आवश्यकता है कांग्रेस का प्रधान नीतियों पर नियंत्रण न होने का संभवत यह कारण है कि उसका काफी श्रम एवं समय एवं लक्ष्य मामलों में ही व्यस्त हो जाता है दूसरे शब्दों में इसका अर्थ है कि कांग्रेस का नौकरशाही पर नियंत्रण नकारात्मक है
 यह कहना है कि संसद कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है अतिशयोक्ति है हां संसद कार्यपालिका को इसकी आलोचना करके प्रभावित कर सकती है दलीय राजनीति  मैं सांसद को और सशक्त कर दिया महाराष्ट्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले भ्रष्ट होते हुए भी वहां की विधानसभा द्वारा दंडित नहीं हो सके
4 दलिया अनुशासन आधुनिक राजनीति किधर हो की विशेषता है जिसने भी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को शासक कार्यपालिका के आश्रित बना दिया है सरकार संसद में अपने बहुमत की ओट में स्वयं को सुरक्षित समझती है
               प्रशासन पर कार्यपालिका का नियंत्रण
 उत्तरदाई सरकार में प्रशासन पर कार्यपालिका का नियंत्रण दूसरा शक्तिशाली साधन है आधुनिक शासन तंत्र में शासन की नीतियों का निर्धारण  मुख्य कार्यपालिका द्वारा ही होता है सरकारी कर्मचारी ही इन नीतियों का क्रियान्वयन करते हैं वह मुख्य कार्यपालिका के विपरीत एक अस्थाई अवधि के लिए नियुक्त किए जाते हैं उन पर राजनीतिक दलों के उत्थान पतन का कोई प्रभाव नहीं होता है इस  प्रकार लोक सेवाओं पर कार्यपालिका के नियंत्रण की आवश्यकता से स्पष्ट है जिससे उसका आचरण कार्यपालिका की आशाओं के अनुरूप हो किंतु इस प्रकार का वांछित आचरण कोई सरल कार्य नहीं है लोक सेवा हर देश में परिवर्तन में बाधा डालती है और वह मुख्य कार्यपालिका द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों तथा नवीन योजनाओं के प्रति वांछित निष्ठा का प्रदर्शन भी नहीं करती है लोकसेवा द्वारा सामान्य परिवर्तन का विरोध किया जाता है संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यू डील कार्यक्रम के क्रियान्वयन में लोक सेवा एक बड़ा मानी गई थी ब्रिटेन में भी लोक सेवा में मजदूर सरकार के समाजवादी कार्यक्रम में एक प्रकार की बाधा प्रतिरोधी उपस्थिति थी इतना ही नहीं प्रशासकीय यंत्र के विभिन्न विभागों में मतभेद होते हैं वह साम्राज्य निर्माण में लगे रहते हैं और अधिक से अधिक शक्ति हथियाने के लिए अस्पष्ट व्यागर हैं की संख्या तथा इलाहाबाद ही रोमांचकारी नहीं होते बल्कि प्रशासन तंत्र के  विभिन्न तत्वों द्वारा सामंजस्य के स्थान पर एक दूसरे का विरोध ही करते हैं और अन्य अभी करना तथा कार्यपालिका के  मुकाबले में अपनी स्थिति को दिल दे करने में लगे रहते हैं फल स्वरुप व विधानमंडलों तथा दलों से समझौता करते हैं और साधारण जनता से अपने कार्यों के लिए पर्याप्त समर्थन प्राप्त करने हेतु प्रचार भी करते हैं ना केवल कार्यक्रम के क्षेत्रों में अपनी कार्य करने के निर्धारित तरीकों में भी उनके हित अनहित होते हैं इससे नौकरशाही की सुरक्षात्मक स्थिति एवं आत्म चेतना को बढ़ावा मिलता है नवीन कार्यक्रमों तथा नवीन प्रणालियों द्वारा जो परिवर्तन प्रस्तावित किए जाते हैं इस सुंदर संतुलन के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं और इसी कारण उनका लोक सेवा द्वारा विरोध किया जाता है इन्हीं कारणों से नौकरशाही नवीन सप्ताह के लिए प्रायः एक उग्र प्रतिस्पर्धी अनुदार सकती हो जाती है अंतर स्पष्ट है कि लोक सेवा का नियंत्रण संचालन तथा समय एक अत्यंत कठिन कार्य है उपर्युक्त कथन अमेरिकी शासन पद्धति से संबंधित है भारत की स्थिति संयुक्त राज्य अमेरिका से भिन्न है प्रथम सांसद प्रधानमंत्री की प्रति धमकी नहीं है दूसरे मंत्रीमंडल प्रधानमंत्री के बाहर को हल्का करने के साथ-साथ  समन्वयकर्ता के रूप में भी कार्य करता है तीसरे  सिर्षसथ पर राजनीतिक कारणों के अपेक्षाकृत कम व्यक्ति नियुक्त किए जाते हैं
 कार्यपालिका को प्रशासन पर नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपकरण प्राप्त है

A नियुक्ति तथा निष्कासन का अधिकार
B नियम निर्माण एवं अध्यादेश इत्यादि के अधिकार
C लोक सेवा संहिता ( civil service code )
D कर्मचारी वर्ग के समुदाय का अभिकरण
C बजट तथा
E लोकमत से अपील
                 प्रशासन पर न्यायिक नियंत्रण

 प्रशासन पर ग्राह्य नियंत्रण के दो साधन है प्रथम विधायक अथार्थ विधानमंडल का और दूसरा न्यायिक न्यायपालिका का वैधानिक नियंत्रण कार्यपालिका की शाखा की नीति तथा व्यय को नियंत्रित करता है और न्यायपालिका का नियंत्रण प्रशासकीय कार्यों की वैधानिकता निश्चित करता है इस प्रकार जब कोई सरकारी अधिकारी नागरिक अधिक संविधान में मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं तो न्यायपालिका उसकी रक्षा करती है नया गीत निमंत्रण का प्रमुख उद्देश्य व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना है जो निश्चित ही बड़े महत्त्व कार्य है और निष्ठा ठीक ही कहा है कि प्रशासनिक अधिकारों के बढ़ने पर उनकी सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ावा भी आवश्यक है ताकि उन अधिकारों का दुरुपयोग ना हो और सरकारी कर्मचारी द्वारा फूल और पक्षपात करने या अतिउत्साह प्रदर्शित करने कि जब तक संभावना है तब तक व्यक्ति के अधिकार की रक्षा करना उतना ही आवश्यक है जितना किसी सरकारी नीति का प्रभावशाली होना
 प्रशासकीय कार्यों पर



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